Tuesday 29 March 2016

Ek kadam ki doori

कौन कहता है,
कि मंज़िल आसानी से मिल जाती है?
दिन-रात मेहनत करनी पड़ती है,
हर रोज़ नई चुनौती मिलती है।

सपने बड़े होने चाहिए,
उनके साथ-साथ हौसला और हिम्मत भी जुटाना पड़ता है।
जब तक हमारी इच्छाएँ पूर्ण न हों,
तब तक उनका पीछा करना चाहिए।

मैंने भी बड़े ख्वाब देखे,
मुझे बनना था कामयाब।
हर किसी को गर्व से बोलती थी,
कि मेरी मंज़िल मुझसे दूर नहीं।

 मैंने भी महनत की थी,
सफल हो गई थी,
मेरे मंज़िल और मेरे बीच,
एक कदम की दूरी थी ।

उसी सफर को पूरा करना,
मेरा लक्ष्य था।
सारी बाधाओं  से लड़ कर,
मुझे अब मुँह मोड़ना न था।

मैं  झूम उठी थी यह सोचकर,
कि अब मैं सफल हो जाऊँगी ।
आखिर मैंने साबित कर ही दिया,
कि  कोई भी काम मुश्किल  नहीं ।

इतने नज़दीक से,
मैंने उसे देखा न था।
रोज़ जो ख्वाब देखती थी,
आज वह पूरा हो गया।

मगर मुझे क्या पता था,
कि ज़िंदगी मेरे साथ ऐसा खेल खेलेगी ।
मुझे धोखा दे देगी अचानक,
और मेरे ख्वाब तोड़ देगी ।

आज भी उसी स्थान पर खड़ी हूँ,
लोग पूछते हैं कि ऐसा क्यों ?
अपनों ने भी हिम्मत हार दी,
और मैं हूँ कि सपने देखती रही ।

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