Tuesday 2 May 2017

बेताबियाँ (गाना)

खेल इन तकदीरों का,
देखो तो ज़रा,
कैसे मिलाती है अजनबियों को,
क्या तुम्हें कभी ऐसा ख्याल आया?

कोई भी हो ख्वाहिशें,
मिलती हैं मंज़िलें,
फिर क्यों यह फिक्र?,
क्यों करते हो घम का ज़िक्र?

ले जाती हैं कहाँ,
देखते हैं यह लकीरें,
यह बेताबियाँ,
क्यों है जागी रे?

कोई ठिकाना नहीं,
करते बहाना नहीं,
फिर है क्यों ऐसी ख्वाहिशें?
क्यों लगता है भय हमें?

कल थी सुबह सुहानी,
हर शाम भी रूमानी,
न जाने कब हुई,
तू इतनी ज़रूरी?

ले जाती हैं कहाँ,
देखते हैं यह लकीरें,
यह बेताबियाँ,
क्यों है जागी रे?