Sunday 11 August 2019

कभी अगर कुछ चाहूँ तो

यह ज़िन्दगी,
है एक उलझी हुई सी पहेली।
कभी कुछ समझा नहीं,
क्यों होती है यह ऐसी।

हर किसी के दिल में,
भरती हैं ख्वाहिशें ऐसी।
कभी अगर कुछ चाहूँ तो,
मिलती है मुझे सिर्फ सवालों की नदी।

क्यों चाहिए तुम्हें वह चीज़?
क्या करोगी तुम यह खरीद कर?
तुम्हें क्या सच में इसकी है ज़रूरत?
कोई भी चीज़ तुम यूं ही खरीदो मत।

ऐसी मिलती है सलाहें,
कभी मन की सुनो तो डाट खा लेती है यह ख्वाहिशें।
कभी अगर कुछ चाहूँ तो,
होती है मुझसे लोगों को शिकायतें हज़ारों।



©kritsb

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