Thursday 12 July 2018

तुम कहीं, मैं कहीं

सौ बार तुमको देखा,
सौ बार तुम पे हुए फिदा,
यह आँखें तेरी कह जाए मुझे,
तुझसे में कभी न होऊँ जुदा ।

कुदरत ने ऐसी बनाई हमारी लकीरें,
कि वह है एक जगह पर मिलते,
जीवन की संघर्षों को साथ मिलकर करें सामना,
चले साथ हम जहाँ हैं जलते अंगारे ।

सौ वादे किए,
सौ बिताए लम्हे,
यह ज़िन्दगी है अधूरी,
तुम बिन हम एक कदम भी न चले ।

मगर हालात हुए कुछ ऐसे,
तुम मुझसे दूर चलते गए,
थक गए तुम्हें ढूँढकर हम,
तुम बिन हम साँसें न ले सके ।

अगर पता होता हमें,
कि ऐसे दिन आएँगे,
तो पहले ही हो जाते सतर्क,
तुम्हें कभी न छोड़ते अकेले ।

अब तुम्हें खो चुके हैं हम,
तुम्हें न देखने का है दिल में ग़म,
कहाँ खोजती रहूँगी मैं?
मेरे हौसले तोड़ने लगे हैं दम ।

मिलना है हमें तुमसे,
करनी है ढेर सारी बातें,
तुम चले गए हो बहुत दूर,
अब तो सारी मुलाक़ातें बन गई हैं यादें ।

तुम हो कहीं,
मैं हूँ कहीं,
अब तो हमें वह ही मिलाएगा,
जिन पर भरोसा करते हैं सभी ।



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