Friday 15 July 2016

Dharm

धर्म ने सभी को जुदा किया,
एक होकर कोई न रह पाया।
हर धर्म के अलग-अलग नियम,
धर्मों से है यह संसार भरा।

हमें अपने धर्म पर नाज़ है,
हमें अपने धर्म पर गर्व है।
हर किसी का धर्म है उसके लिए खास,
हर धर्म का अलग पर्व है।

धार्मिक है वह जो अपने धर्म को,
देते हैं प्राथमिक दर्जा।
वह नहीं है धार्मिक जो दूसरे धर्मों को,
दिखाता है गलत रास्ता।

धर्म चाहे जो हो,
भेद-भाव न हो।
एकता और समानता से रहो,
बाधा आने पर एक-दूसरे की सहायता करो।

शिकायत न करो किसी की,
मिलेगा तुम्हें अपमान।
हर जाति, हर धर्म का,
करना चाहिए हर किसी को सम्मान।

1 comment:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 23 जुलाई 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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