Friday 1 November 2019

इन लहरों का भी क्या कहना

बूंद - बूंद कर के,
एकजुट हो जाती है,
सूखे को भी,
हरियाली में परिवर्तन कर जाती है।

कभी रखी न कोई अभिलाषा,
और न ही की दखलंदाज़ी,
हर वक़्त है यह दिलाती,
एक नज़ारा जो है सबसे अनोखी, सबसे निराली।

प्यास बुझाए हर प्यासे की,
दे हर प्राणी को जिंदगी,
है यह पृथ्वी का गहना,
इन लहरों का भी क्या कहना।

हर बार है यह सौंपती,
अपने आप को,
भलाई का तो ज़माना ही नहीं रहा,
जो भी मिलता है, क्यों उसमें तुम खुश न रह सको?

हद कर दी इस दुनिया ने,
लालच की सीमा पार कर गयी,
सब कुछ छीन लिया कुदरत से,
और फिर भी बेशर्मों की तरह एहसान मांगते गयी?

क्रोध तो आता ज़रूर,
अब तो बदला लेने का वक़्त आ गया,
बाढ़ के रूप में आकर एक - एक को सबक सिखाया,
इन लहरों का भी क्या कहना।


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