Wednesday 19 June 2019

क्या ख़्वाब था वो (गाना)

नींदे मेरी जो चुराए हर रात,
जाने कहाँ ले जाये जज़्बात,
कुछ भी न समझे हाय मेरा मन,
जाने कैसा है यह पागलपन ।

कभी उजाले में दिख जाए,
तो कभी रात को सताये,
एक बात है उसे बताने को,
न जाने क्या ख़्वाब था वो ।

कुछ शर्मा कर कह देता है,
कुछ हँस कर छेड़ देता है,
कभी भी खुद को छुपा न सका,
खुद को मुझसे न कर पाया जुदा ।

हर बार मेहमानों की तरह आए,
अधूरी कहानी हर रात बताए,
जिज्ञासा मन में ला कर चला जाता था वो,
न जाने क्या ख़्वाब था वो ।

कोई दस्तक देना चाहता है,
हर रोज़ नए बहाने बनाता है,
फिर फिल्मों की तरह खींचा चला जाए,
बिना कोई संकेत दिए खुद ही भागता जाए ।

पीछा नहीं छोड़ता है,
कितना सताता है,
मेरी ज़िंदगी को काबू में रख लेगा जो,
न जाने क्या ख़्वाब था वो ।

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