Friday, 1 May 2020

तोड़ दिया

कितना आसान है धोखा देना,
कितना आसान है दूसरों के उम्मीदों को तोड़ना,
दु:ख तो हर कोई पहुंचा सकता है,
मगर मुश्किल है हर बेहते हुए आंसू को पोछना।
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हर दर्द की एक वजह है,
जिसका मरहम हर किसी के पास नहीं,
बटवारे से दर्द कम नहीं होता,
परंतु हर चर्चा का विषय बनते देख पछतावा होता है कहीं।
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क्यों विश्वास तोड़ दिया?
क्या मिला दु:ख दे कर?
यह दुनिया शातिर भी है और कायर भी,
गलती मानने से दूर चले जाएंगे सभी।
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इस मासूम और भोले चेहरे की चमक को,
दुनिया के लोगों ने मिटा दिया,
अपने मतलब के लिए मासूम लोगों का,
जी भर के इस्तेमाल किया।
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विश्वास अब करने लायक कोई है नहीं,
उस आस को तोड़ दिया,
अकेलेपन ने अब साथ दे कर,
हर लम्हे के एहसास को तोड़ दिया।
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कवियित्री © - कृतिका भाटिया

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