Friday, 1 May 2020

सब हैं लेकिन...

कहीं खोया खोया सा था मैं,
कुछ अधूरा सा था मैं,
किसी ने न देखा,
और न ही मैंने दिखाया।
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इस भीड़ में चलते कितने लोग,
कहीं किसी अजनबी से हुआ होगा संजोग,
किसी ने दोस्ती का बढ़ाया होगा हाथ,
तो किसी के हमसफ़र का छूटा होगा साथ।
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सब अपनी उलझनों में हैं डूबे,
हर मुश्किल के हैं अलग किस्से,
यहां मौजूद सब हैं लेकिन,
मैं अपने ही दुनिया में कहीं खो रहा हूं रात - दिन।
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किसी को घर की है चिंता,
तो कहीं कोई जी रहा है बेपरवाह,
सैकड़ो की है आबादी यहां,
मगर जो अकेलापन दे जाए वह भीड़ ही क्या?
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सब स्वार्थी हैं इस दुनिया में,
अपने फायदे के लिए किसी को भी फसाएंगे,
किसी को दूसरों की नहीं करनी भलाई,
बस अपना ही नाम रोशन कर के दिखानी है चतुराई।
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सब अपनी उलझनों में हैं डूबे,
हर मुश्किल के हैं अलग किस्से,
यहां मौजूद सब हैं लेकिन,
मैं अपने ही दुनिया में खुश हो कर कहीं खो रहा हूं रात - दिन।
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© कृतिका भाटिया
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