Tuesday, 2 June 2020

इन फासलों के दर्मियान

कहीं खोए थे,
सपनों में,
कभी जागे थे,
रातों में।

इश्क़ का ऐसा चढ़ा खुमार,
क्या कहें,
मुझे तो पलकें झपकते ही,
सिर्फ तुम ही नजर आने लगे।

तुम रहते हो मुझसे बहुत परे,
तुमसे मिलने को जी चाहे,
अब खाली और सूना लगता है जहां,
इन फासलों के दर्मियान।

कहनी थी तुमसे,
अपनी दिल की बातें,
जब तक हिम्मत जुटा पाई,
तुम लौट चले परदेस देकर तन्हाई।

अब तो सात बरस बीत गए,
तुम्हारे इंतेजर में,
बातें तो होती रहती हैं हमारी,
मगर आमने - सामने कब होंगे, यह हूं सोचती।

दिन तो बीत जाए,
मगर रातों की ख़ामोशी सताए,
दिल की बातें कर न पाई ज़ुबान,
इन फासलों के दर्मियान।

© कृतिका भाटिया

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