हमारी सोच,
हमें अपनी मंज़िल तक पहुंचाती है।
अगर सोच अच्छी हो,
तो मंज़िल मिल जाती है।
हर कोई इस दुनिया को,
अलग नज़रिए से देखता है।
कामयाब हर कोई बनना चाहता है,
हम कभी - कभी अपने आप से ज़्यादा ही उम्मीद करते हैं।
पैर उतने ही फैलाने चाहिए,
जितनी चादर हो।
यह मुहावरा प्रसिद्ध है,
और हमारी ख्वाहिशों के लिए बराबर है।
हम बहुत ऊंची सोच रखते हैं,
हमारी पहुंच उतनी तो है नहीं,
फिर भी अपनी सोच को कायम रखते हुए,
हम कुछ ज़्यादा ही मांगते हैं।
यह ख्वाहिशें हैं ही ऐसी,
चैन से सोने नहीं देती,
हर दम सताती है,
जब भी सपनों में आती है।
हमें अपनी मंज़िल तक पहुंचाती है।
अगर सोच अच्छी हो,
तो मंज़िल मिल जाती है।
हर कोई इस दुनिया को,
अलग नज़रिए से देखता है।
कामयाब हर कोई बनना चाहता है,
हम कभी - कभी अपने आप से ज़्यादा ही उम्मीद करते हैं।
पैर उतने ही फैलाने चाहिए,
जितनी चादर हो।
यह मुहावरा प्रसिद्ध है,
और हमारी ख्वाहिशों के लिए बराबर है।
हम बहुत ऊंची सोच रखते हैं,
हमारी पहुंच उतनी तो है नहीं,
फिर भी अपनी सोच को कायम रखते हुए,
हम कुछ ज़्यादा ही मांगते हैं।
यह ख्वाहिशें हैं ही ऐसी,
चैन से सोने नहीं देती,
हर दम सताती है,
जब भी सपनों में आती है।
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